सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

कोरोना काल (गीत)


मैया एलौं  कोना इ कोरोना काल मे
बझल अछि दुनियां कोन जंजाल मे ना

केहेन समय छै ने कहियो देखल 
एहेन दुर्दिन ने आई धरि सोचल
देखू कोना लोके सं लोक डेरायल छै
कतेक दर्द भक्तक एहि सवाल मे ना
मैया एलौं अहां.......... 

नौकरी-चाकरी सब छै छूटल
जन-मजूर भेल घर सं बेघर
विनती करैत बेरोजगारी सं घेराएल छै
बाले-बच्चे भूख सं बेहाल भेल ना
मैया एलौं अहां...........

धिया-पुता के स्कूलो बंद छै
मंद पड़ल देश-दुनियांक व्यापार
सरकारोक सुधि-बुधि हेराएल छै
चहुँ दिस मचल कोन बवाल छै ना
मैया एलौं अहां...........

चुनावक सभा पर नहिं छै पहरा
वोटक लेल कोरोनो भागल
मुदा पूजा-पाठ मेला सं डेराएल छै
अपना देशक नेता सभ कमाल छै ना
मैया एलौं अहां...........

©प्रकाश कुमार झा 
आकाशवाणी, भागलपुर

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

मेरा मन💕 रो रहा है


मेरा मन रो रहा है
ये तन-बदन रो रहा है
सारे जहाँ के साथ
मेरा वतन रो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।।

कोई तो बताए जरा
क्या गुनाह है उसका
जो वतन परस्ती में
अपनी जान खो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।। 

उन वीरांगनाओं की खता
बताओ बूढ़ी माँ का दोष
उस बच्चे की गलती जो
अपनों के शव ढ़ो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।। 

इंसानों की बस्ती में
शैतानों का आ जाना
पाक-चीन की सह पर
मौत का तांडव हो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।। 

कोई शोक मनाना है
कोई निन्दा करता है
राजनीति करता हुआ
पक्ष-विपक्ष सो रहा है
मेरा मन रो रहा है  ।।

© प्रकाश कुमार झा
आकाशवाणी, भागलपुर 

सोमवार, 14 सितंबर 2020

माँ/माँ

डाॅक्टर अपन मरीज सं कहलखिन्ह - जानकी,  चूंकि अहां  पहिल बेर मां बनलौंह अछि तैं हम अहां के एकटा जरूरी सलाह द दैत छी । ध्यान राखब जे बच्चा के अगिला छः मास धरि मात्र अपने दूध पियेबै।  मां के दूध बच्चाक लेल अमृत होइत छैक।  छः मासक उपरान्त अपन दूधक संग किछु बाहरो के पदार्थ द सकै छी। 
ई कहैत डाॅक्टर बाहर निकलि गेलाह ।
जानकीक मां सेहो ओहिठाम रहथिन्ह।  डाॅक्टर के  गेलाक उपरान्त ओ अपन झोरा स दूधक बोतल निकालि बेटी दिश बढ़बैत अपन उपदेश देलखिन्ह :'बेटी अहां पहिनेहें बड्ड कमजोर भ' गेल छी ताहि द्वारे बच्चा के अपन दूध नञि पियायब । गायक दूध सेहो बड्ड गुणकारी होई छैक । डाॅक्टर सब त अहिना कहै छै , ओकरा सबके किछु लगै छै । हमरा अहांक शरीरक चिन्ता अछि तैं एकरा गायक दूध दियौ।'
मायक सलाह मानैत जानकी अपन बच्चा के मुंह मे बोतल लगा देलखिन्ह ।

©प्रकाश कुमार झा 
भागलपुर 
9431874022

पांति

एक गोट IAS अधिकारी के पुत्र सुनील कुमार सेहो IAS भ गेलाह । संजोग स IAS अधिकारीक पिता सेहो किछु वर्ष पहिने प्रशासनिके सेवा स रिटायर भेल छलाह । अर्थात हिनका सबहक लगातार तेसर पीढ़ी प्रशासनिक सेवा मे जा रहल छल। एहि खुशी मे सुनील कुमार जी निर्णय लेलनि जे भोज-भात मे टाका व्यर्थ कर' स नीक जे जारक मौसम मे गरीब सबहक बीच कम्बलक वितरण करी।  एहि प्रकार अपन पिता स विचार-विमर्श केलाक उपरान्त ओ एकटा नीक दिन देखि बगले के एकटा गामक  स्कूल मे कम्बल वितरण लेल कैम्प लगेलाह । आ एहि प्रकार कम्बलक वितरण आरम्भ भेल।  ओहि गामक गरीब-गुरबा सब पांति मे ठाढ़  भ अपन-अपन बारी के प्रतीक्षा कर' लागल । सुनील कुमार जी अपने हाथे सबके कम्बल दान कर' लगलाह । जखन ओ लगभग दू-तीन सौ कम्बल दान क चुकलाह तखन हुनकर ध्यान गेलैन्ह जे किछु लोक दोबारा-तेबारा लाइन मे लाइग कम्बल ल रहल छल ।

ओ चिकर' लगलाह - अएं हौ तोरा सबके कनिको लाज नहिं होय छह?  

की भेल मालिक?  लाइन मे लागल एक टा गरीब हुनका पुछलकन्हि। 

सुनील बाबू - की भेल मालिक,  तों हमरा सं पुछै छह?  पूछहक ने अपना आगा - पाछा जे पांति मे ठाढ़ छह तकरा सबके? 

फेर कियो बाजि उठल - नहिं बुझलौंह मालिक कनी फरिछा क कहियौ ने। 

सुनील बाबू आर तसमा गेलाह - देखै नहिं छहक, कैक गोटे दू-दू, तीन-तीन बेरि लाइन मे लागि कम्बल ल लेलक अछि।  अहुना कतौ होई?  एना जे किछु गोटे एक स बेसी कम्बल ल लेताह त सब जरूरतमंद धरि मदति पहुंच सकतै ?

लाईन मे स एक टा नवयुवक राजेश जे पढ़ल-लिखल छल आ प्रतियोगिता सबहक तैयारी करैत छल, तकरा नहिं रहल गेलै आ बाजि उठल - एतेक किएक तमसाई छीयै सर?  

सुनील बाबू - तों चुप रह,  तोरा किछु कहलियौ ?

राजेश - हयौ सर एकटा कियो बेसिए ल लेलक ताहि मे एतेक तमसेबाक कोन काज, लेबए दियौ ।

बड़का एलाहा पंचैती कर' - सुनील बाबू पसीना पोछैत बाजए लगलाह । तों की बुझबही ? तों त अपन कम्बल ल चलि जेबएं आ जे लोक सब पाछा मे ठाढ़ अपन-अपन बारी के प्रतीक्षा क' रहल अछि तकर की?  एना जे सब कियो बेसी-बेसी ल लेतै त पाछाक लोक धरि मदति पहुंच सकतै ?

राजेश - बात अहांक उचित अछि। मुदा एकटा बात कहब त तमसेबै नै ने? 

सुनील बाबू - हं कह ने,  की बात? 

राजेश - नञि कहब अहां तसमा जाएब आ हमरा कम्बलो नञि देब। 

सुनील बाबू - हे-हैया ले तोहर कम्बल।  चल आब कह। 

राजेश - त सुनू , जे काज एहि ठाम कम्बल पएबा लेल किछु लोक क रहल अछि वैह काज त अहूं कैलौंह अछि। 

सुनील बाबू - से कोना रौ , हमरा कत' तों कम्बलक लाइन मे ठाढ़ देखलैंह? 

राजेश - हम कम्बलक नञि , नौकरीक लाइनक गप्प क' रहल छी। 

सुनील बाबू - नौकरी सं कम्बल के की संबंध,  कनी फरिछा क कह। 

बहस ततेक बढ़ि गेल जे आस-पासक लोक सब सेहो जमा भ गेल।  कम्बल वितरण सेहो ठमकल छल। 

राजेश - नौकरी आ कम्बल के कोनो सम्बन्ध नहिं छै सर।  संबंध छै दुनू ठाम लाइन मे लागल अंतिम व्यक्ति धरि लाभ पहुंचबा सं। 

सुनील बाबू - हमरा किछु नञि बुझाएल।  इ सब छोड़ हमरा पर जे तों आरोप लगेलैं तकरा फरिछा ।

राजेश - सैह त कहि रहल छी सर।  अहांक परिवार सं अहां लगातार तेसर पुस्त छियै जे प्रशासनिक सेवा धरि पहुंच अपन परिवार,  समाज आ गामक नाम रौशन केलियेई अछि। एकर अलावे अहांक परिवार सं अनेक सदस्य सब केन्द्र आ राज्य सरकारक विभिन्न पद के सुशोभित क रहल छथि। बेर-बेर अहां सब भारतक संविधान द्वारा भेटल आरक्षणक लाभ उठा रहल छी। एना जे खाली अहीं सब वा अहां सन किछु परिवार आरक्षणक लाभ लैत रहतै त हमरा सन लोक अथवा एहि पांति मे ठाढ़ अंतिम व्यक्ति धरि ओकर लाभ कोना पहुंचतै । 

सुनील बाबूक मूंह-कान लाल भ गेलैन्ह ।

राजेश पुनः बाजल - हम कोनो नव बात नहिं कहलौंह सर अहां जे कहलियै तकरे समर्थन कैलौंह। 

एतेक सुनैत देरी अगल-बगलक भीड़ सं थोपरी के आवाज गनगना उठल आ सुनील बाबू पुनः कम्बलक वितरण मे लागि गेलाह ।

©प्रकाश कुमार झा 
भागलपुर 
मो० 9431874022


शनिवार, 25 जुलाई 2020

फतबा

खट्टर कक्का अपन दलान पर बैसल दतमनि क रहल छलाह । तखने पूब दिस सं उदन आ पश्चिम दिस सं सरोज के अबैत देखलखिन्ह ।

खट्टर कक्का - आबह आबह उदन । बड्ड दिन पर देखलियह । अरे सरोज तोंहो छह?  आबै जाह,  बैसह ।

एक्के संग सरोज आ उदन - गोर लगै छी खट्टर कक्का ।
खट्टर कक्का  - खूब नीके रहय जा।  सब दिन  अहीना दनदनाइत रह'।  बैसह तों सब,  हम कुर्रा केने अबै छी। 

खट्टर कक्का क'ल पर जा कुर्रा कएलाह आ अबैत- अबैत अपन पोती के चिकरि क तीन कप चाह बना क' आनए कहि देलखिन्ह ।

खट्टर कक्का  -  आब सुनाबह तों सब । की कोनो खास प्रयोजन? 
सरोज - जी खट्टर कक्का,  एकटा खास काज सं आएल छलौंह ।
खट्टर कक्का  - हं बाजह ने।  कोन काज छह? 
सरोज - कक्का आई सांझ मे पांच बजे सं #मैथिली ट्वीटर पर ट्रेंड करेबाक छै । तैं अहां सं विशेष आग्रह अछि जे एहि मे हमरा सबके सहयोग करियौ ।
खट्टर कक्का - हौ आई-काल्हि देखै छियै खूब लोक सभ ट्वीटर -ट्वीटर क' रहल अछि।  हम त ओतेक बुझबो नहिं करै छियै ।
सरोज - कक्का अहां के हम सब बुझा देब । अहां  कनी अपन टोलक लोक सब के एक बेर अवश्य एकर सूचना द' देबैन्ह । अहांक बात सब मानै छथि ।
खट्टर कक्का - हं हौ । हम अहि सब मे पाछा रहै छी?  हम सबके समाद पठा देबह । 
 
एहि मध्य खट्टर कक्का के पोती चाह ल'  एलीह ।

खट्टर कक्का - लै जाह चाह पीबह ।
खट्टर कक्का - उदन तों किएक चुप बैसल छह।  अपन सुनाबह । तोंहो कनी अपना टोल मे सरोजक बात के चर्च क दिहक ।
उदन - नहिं खट्टर कक्का,  हमर सबहक अलग संगठन अछि 'मिथिला कल्याण'।  हमर सबहक ट्रेंड अगिला रवि क' छैक । सरोज जी सब त 'मिथिला महिमा' सं जुड़ल छथि। 
खट्टर कक्का - अएं हौ एना किएक ? की मिथिला कल्याण के मैथिली अलग आ मिथिला महिमा के मैथिली अलग छैक ?
उदन - अलग त नहिं छैक कक्का,  मुदा हमर संगठन आह्वान कैलक अछि जे हमरा लोकनि अझुका ट्रेंड मे भाग नहिं ली। 
खट्टर कक्का - वाह, तों सब त बड्ड तरक्की कैलह । मिथिलो मे आब 'फतबा' संस्कृति आनि देलह ।

©प्रकाश कुमार झा
आकाशवाणी, भागलपुर 
मो.नं. 9431874022

शनिवार, 4 जुलाई 2020

धन्यवाद वाजपेयी जी


नव भारत टाइम्स, नई दिल्लीक 26 अप्रैल, 2003 अंक मे हमरा द्वारा लिखित प्रधानमन्त्री क नाम पत्र प्रकाशित भेल छल। ओही वर्ष 22 दिसम्बर क मैथिली के संविधानक अष्टम अनुसूचि मे सम्मिलित करबाक बिल लोकसभा मे पारित भेल।  

बंधी आश

इंडिया टुडे (02 जुलाई, 2003) अंक के चिठ्ठियां कॉलम मे छपल हमर पत्र

रविवार, 21 जून 2020

ठगतंत्र



नेताओं की टोली फिर 
सड़कों पर दिखने लगी है
लगता है चुनावी मौसम
फिर आ चला है
खुल जाएंगे वादों के पिटारे
आश्वासनों के अम्बार लगेंगे
आरम्भ होंगे सपने दिखाने के सिलसिले 
भाषणों से लोगों की आंखें चमकेंगी
खुश हो सब तालियां बजाएंगे
नेताजी फूले नहीं समाएंगे
यह सोचकर कि
वे एक बार पुन:
हो गए हैं कामयाब
जनता को बरगलाने में
कम से कम पांच वर्षों के लिए उनकी
ऐशो-आराम का प्रबन्ध हो गया है
और कहीं मंत्री-वंत्री बन गए
फिर तो कई पुस्त
बैठे-बिठाए मौज करेंगे
जनता इनके किए वादों से ही
पांच साल अपना मन बहलाएगी
अगले चुनाव में फिर कोई आएगा
नये-नये तरीकों से
अच्छी-अच्छी सपने दिखाएगा
झांसे में आकर जनता 
फिर से ठगी जाएगी
यही सिलसिला वर्षों से
चला आ रहा है और चलता रहेगा
समझ नहीं आ रहा इसे
लोकतंत्र कहें या ठगतंत्र

@प्रकाश कुमार झा
भागलपुर
9431874022
 


रविवार, 14 जून 2020

प्रवासी



अपने देशक वासी आई प्रवासी बनल अछि
अपने गामक लोक के आई परदेशी कहल अछि
प्रश्न केनिहार स्वयं अंग्रेजी बजैत विदेशी बनल अछि
मुदा ओकरे नहिं मानल अपन जे स्वदेशी आनल अछि
अपने देशक वासी आई प्रवासी बनल अछि

कोरोनाक तेहेन कहर सबहक रोजगार छीनल अछि
मजबूर भ मजदूर अपन-अपन गाम पैरे चलल अछि
जीवन मे किंसाईते कहियो एहेन कष्ट सहल अछि
भुखल-पियासल बाले-बच्चे लटुआएल पड़ल अछि
अपने देशक वासी आई प्रवासी बनल अछि

बनाओल दोसराक महल नहिं अपन आवास बनल अछि
जे पेट भरैए संसार के वैह किसान‌ भूखल अछि
पलंग-दीवान बनौनिहार स्वयं जमीन पर सुतल अछि
देह पर नहिं लिबास से सबहक वस्त्र बुनल अछि
अपने देशक वासी आई प्रवासी बनल अछि

चुनावक समय वोटक खातिर नेता-मंत्री सटल अछि
आवश्यकताक समय सरकारो अपन हाथ खींचल अछि
रोजी-रोटीक जोगाड़ मे नगर-नगर जे भटकल अछि
तकरा लेल सोनू सन भारत मां क सपूत जनमल अछि
अपने देशक वासी आई प्रवासी बनल अछि
अपने देशक वासी आई प्रवासी बनल अछि

@प्रकाश कुमार झा
भागलपुर
9431874022



एहि रचनाक विडियो सेहो उपलब्ध अछि । देखबाक लेल लिंक पर क्लिक करू



गुरुवार, 11 जून 2020

मैं बहुत खराब हूँ




लोग कहते हैं कि मैं बहुत खराब हूँ
खुबसूरत से बोतल में बन्द शराब हूँ

मुझसे दोस्ती करने की कोशिश न करना
क्योंकि मैं दो समुदायों के बीच बनी दीवार हूँ

मुझसे किसी भी चीज की कामना न करना
क्योंकि मैं आश्वासन देते रहने वाला स्वभाव हूँ

मुझे समझने की कोशिश बिल्कुल न करना
क्योंकि मैं गणित का न सुलझने वाला सवाल हूँ

मुझे किसी भी तरह रोकने की कोशिश न करना
क्योंकि मैं अन्तहीन दिशा में बहती नदी का बहाव हूँ

मुझे कहीं भी ढूंढने की कोशिश न करना
क्योंकि मैं किसी भूल-भूलैया वाले चौराहे का घुमाव हूँ

मुझे किसी भी तरह जोड़ने की कोशिश न करना
क्योंकि मैं किसी बाँध में पड़ी हुई दरार हूँ

मेरे जैसा बनने की कभी कोशिश न करना
क्योंकि मैं भारतवर्ष से न मिटने वाला भ्रष्टाचार हूँ

मुझे कहीं से भी पकड़ने की कोशिश न करना
क्योंकि मैं घोटालेबाज, जेल का कैदी फरार हूँ

क्या अब भी नहीं समझ पाए कि मैं कौन हूँ
मैं भारत के कोने-कोने में पाया जाने वाला नेता महान हूँ

इसलिए लोग कहते हैं कि मैं बहुत खराब हूँ
खुबसूरत से बोतल में बन्द शराब हूँ ।।

@प्रकाश कुमार झा
भागलपुर
9431874022

बुधवार, 10 जून 2020

कोरोना (मैथिली)



चहुंओर मचल अछि हाहाकार
खाली पड़ल विद्यालय-महाविद्यालय
सुनसान अछि सड़क आ बाजार
कोरोना सं सबके बचाबू सरकार
चहुंओर मचल अछि हाहाकार ।

अनवरत चलैत आबि रहल अछि
पर्यावरणक क्षरण जीव-जंतुक शिकार
मनुक्खक असीमित महत्तवकांक्षा
उताहुल अछि समाप्त करबा लेल संसार
चहुंओर मचल अछि हाहाकार ।

मंगल पर घर बसेबाक सपना देखैत
आ चान के अपन मुठ्ठी मे केनिहार
बड़का-बड़का पावर हाउस सब
सृष्टिक सोझा भ गेलाह अछि लाचार
चहुंओर मचल अछि हाहाकार ।

गेंठ बान्हि लिय प्रकाशक विचार
वन-झांखुर,नदी-पहाड़,पोखरि-डबरा
पशु-पक्षी खेत-खरिहानक संग
आबो राखू नव जीवनक आधार
चहुंओर मचल अछि हाहाकार ।।

@प्रकाश कुमार झा
भागलपुर
9431874022






शनिवार, 6 जून 2020

भारत देश


भारत देश महान है
हम भारतीयों की शान है
गंगा-यमुना की अविरल धारा 
भारत देश की जान है
               भारत देश महान है 
               हम भारतीयों का मान है
               अलग-अलग धर्म-भाषाएँ
               इन पर हमें गुमान है 
भारत देश महान है 
महापुरूषों का धाम है
बुद्ध, महावीर, नानक, गाँधी
मिसाइलमैन कलाम है
               भारत देश महान है 
               सारे विश्व में नाम है
               जल, थल और वायुसेना
               विश्व शांति का पैगाम है
भारत देश महान है 
किसानों को प्रणाम है
कमल फूल फूलों का राजा
फलों का राजा आम है
               भारत देश महान है 
               कलाकारों की खान है
               राजकपूर बच्चन रहमान
               लता जी का गान है
भारत देश महान है
खिलाड़ी भी गुणवान हैं
ध्यानचंद सचिन धोनी
खेलों के भगवान हैं
               भारत देश महान है
               शिव-शक्ति का गाम है
               मां कामाख्या-विन्ध्यवासिनी
               बाबा वैद्यनाथ का ठाम है ।
भारत देश महान है
भारत देश महान है

©प्रकाश कुमार झा
भागलपुर
9431874022

शुक्रवार, 5 जून 2020

की बनब बौआ - मैथिली


दादी पुछलैन की बनब बौआ
हम कहलियैन बनब हम क्रिकेटर
सुनि क पप्पा दौड़ल अयलाह
कहलाह बेटा हमर बनत इंजीनियर
भनसा घर सं माँओ एलीह
से नहिं हैत बनत बेटा डाॅक्टर
दीदी किए पाछा रहतीह
ओहो आबि अपन पसिन बतौलीह
बनत हमर बाबू हवाई जहाजक पायलट
करत देश-विदेशक टूर
हमरा आब किछु नहिं फुराइये
एहि एकटा जीवन मे हम
की-की बनबै आ 
करबै ककर-ककर सेहन्ता पूर  ?

©शाश्वत झा
भागलपुर
9431874022







गुरुवार, 4 जून 2020

टेलिफोन


यह रचना सन् २००० में ही लिखी गई थी । उस समय मोबाईल हमारे हाथों में नहीं आया था । लैंडलाइन फोन हुआ करता था वह भी किसी-किसी घर में .......


टेलिफोन क्या ले ली
कोई मुसीबत ही मोल ले ली
जब मन करता है
तभी बज उठता है
न दिन देखता है न रात
न धूप देखता है न बरसात
अपना तो पता नहीं कुछ लाभ हुआ या नहीं
फायदा तो उठा रहे हैं हमारे पड़ोसी
जब देखो तभी पहुंच जाते हैं
कहते हैं फोन करना है जरूरी
एक आदमी है पड़ोसियों को बुलाने के लिए रख ली
पता नहीं कब बज जाए फोन की घंटी और कहे
जरा बुला दीजिए पड़ोस से मेरी घरवाली
न बुलाएं तो पता नहीं
किस-किस से हो जाए मन-मुटाव और दुश्मनी
फोन डेड हो जाए फिर तो भगवान ही बचाए
लाइनमैन के नखरे दिखाए
बिल की तो बात ही मत पूछिए
महीना खत्म हुआ नहीं कि आ टपका
लग गया चूना हजार-दो हजार का
बिल चुका-चुका के 
हो गया मेरा बैंक बैलेंस खाली
टेलिफोन क्या ले ली
कोई मुसीबत ही मोल ले ली
@प्रकाश कुमार झा
भागलपुर
९४३१८७४०२२

गुरुवार, 28 मई 2020

An article on Mithila Painting by Maithil Prakash

fefFkyk isafVax

&izdk’k dqekj >k

vkdk’kok.kh] Hkkxyiqj

9431874022

 

      lu~ 1934 ds Hk;adj HkwdEi ds igys fefFkyk isafVax ftls e/kqcuh isafVax ds uke ls Hkh tkuk tkrk gS] nqfu;ka ds lkeus ugha vk;k Fkk A fcgkj] fo’ks"kdj fefFkyk {ks= ds ml Hk;kud HkwdEi ds le; gekjk ns’k vktkn ugha gqvk Fkk A ml HkwdEi ds mijkUr {ks= esa gq, uqdlku dk tk;tk ysus fczfV’k ljdkj ds vQljksa dk ny vk;k Fkk A ml ny us HkwdEi dh otg ls fxjs gq, ?kjksa dh nhokjksa ij fofHkUu izdkj ds jax&fcjaxs fp=ksa dks ns[kk A ml le; lkjs ?kj dPps gqvk djrs Fks vkSj nhokjksa ij feV~Vh dh ysi yxh gksrh Fkh] ftl ij fefFkyk dh x`gf.k;ka fofHkUu izdkj dh fp=ksa ls ltkoV fd;k djrh Fkha A vaxzst vQljksa esa ls ,d fofy;e vkpZj us bu fp=ksa dks ns[kk os dyk ds ikj[kh Fks vkSj mUgsa ;s fp= csgn ilUn vk, A mUgksaus igys dHkh bl izdkj dh isafVax ugha ns[kh Fkh A ml le; LFkkuh; Hkk"kk esa bls ^fHkfRr fp=^ vkSj bls cukus dh fof/k dks ^fyf[k;k^ dgk tkrk Fkk A xkaoksa esa vkt Hkh bu ’kCnksa dk iz;ksx fd;k tkrk gS A bu jax&fcjaxs fp=ksa dks ns[kdj vkpZj ea=eqX/k gks x, A muds vk’p;Z dk fBdkuk ugha jgk fd Hkkjr ds bl fiNM+s {ks= esa Hkh bl izdkj dh dyk gks ldrh gS A buesa ls dbZ fp=dyk mUgsa if’pe ds tkus&ekus fp=dkjksa dh isafVax dh ;kn fnyk x;h A mUgksaus vius dSejs ls bu fp=ksa ds QksVks fy;s vkSj bl izdkj ;g fp=dyk igyh ckj fefFkyk ds ?kjksa dh nhokjksa ls fudydj nqfu;ka ds lkeus vk;h A fofy;e vkpZj us vius ys[kksa ds }kjk fefFkyk fp=dyk dks is’k dj nqfu;ka dks bl uk;kc dyk ls ifjfpr djok;k A vkt ;s iwjh nqfu;ka esa viuh fMtkbu vkSj csgrjhu vfHkO;fDr ds fy, tkuh tkrh gS A

      e/kqcuh isafVax vFk~ok fefFkyk isafVax esa eq[; :i ls fgUnq nsoh&nsorkvksa ,oa izd`fr ls lacaf/kr fp= cuk, tkrs jgs gSa A fefFkyk esa gksus okys fofHkUu ioZ&R;ksgkjksa] ’kknh&fookg] ewaMu&miu;u vkfn ds volj ij ?kj dh nhokjksa ] iwtk LFkyksa ,oa fofHkUu ikou voljksa ij ^vfjiu^ ds :i esa bUgsa cuk;s tkus dh ijaijk lfn;ksa ls pyh vk jgh gS A izd`fr ls lacaf/kr fp=ksa esa lwjt] pkan ds vykok foHkUu isM+&ikS/kksa ds fp= tSls] ckal] rqylh ds ikS/ks] dey ds Qwy] fofHkUu izdkj ds vU; Qwy vkSj iRrs‘’kkfey jgrs gSa A buds vykos dbZ izdkj ds i’kq&if{k;ksa ds fp= Hkh cuk, tkrs gSa A e/kqcuh fp=dyk eq[; :i ls ?kj ,oa iwtk ?kjksa ftls fefFkyk esa xkslkmuh ?kj vFk~ok Hkxorh ?kj Hkh dgk tkrk gS ds nhokjksa ij ,oa tehu ij fd, tkrs gSa A nhokjksa ij cuk, x, fp=ksa dks LFkkuh; Hkk"kk esa ^fHkfRr fp=^ ,oa tehu ij cuk, tkus okys fp=ksa dsk ^vfjiu^ dgk tkrk gS A fHkfRr fp= eq[; :i ls xkslkmuh ?kj ¼iwtk ?kj½] dksgcj ¼’kknh ds mijkUr nqYgk&nqYgu ds fy, cuk, x, ’k;u d{k½ ,oa esgekuksa ds mBus&cSBus ds LFkku ftls nyku dgk tkrk gS ds Hkhrjh ,oa ckgjh nhokjksa ij cuk, tkrs gSa A tgka rd vfjiu dk iz’u gS rks fefFkyk esa ;s lHkh /kkfeZd voljksa] iwtk&ikB] ewaMu&miu;u] ‘’kknh&xkSuk] e/kqJko.kh] oV&lkfo=h] Hkzkr`&f}rh;k ,oa vU; yksd& ioksZa ds volj ij ftl txg cSBdj iwtk dh fof/k lEiUu dh tkrh gS eq[; :i ls ogka dh tehu dh xk; ds xkscj ls fyikbZ djus ds mijkUr cuk;h tkrh gS A lkFk gh ?kj ds njoktksa ds ckgj Hkh vfjiu fn, tkus dh izFkk gS A bl isafVax dh lcls cM+h fo’ks"krk gS fd ;g iwjh rjg ls efgykvksa }kjk dh tkrh gSa A ;g ,d lkeqnkf;d fØ;k gS ftlesa ?kj dh lHkh efgyk,a ,d lkFk nhokjksa ij isafVax djrh gSa A ?kj dh cqtqxZ efgyk,a NksVh yM+fd;ksa dks fojklr ds rkSj ij ;g dyk fl[kkrh gSa vkSj bl rjg ;g dyk ih<+h&nj&ih<+h vkxs c<+rh vk;k gS A

      ftl izdkj 1934 ds HkwdEi =klnh ds mijkUr fo’o dk bl dyk ls ifjp; gqvk mlh izdkj bl dyk dks O;kolkf;d :i Hkh ,d Hk;adj izkd`frd =klnh ds mijkUr gh feyk A lu~ 1960 ds n’kd esa fcgkj ,oa fefFkyk esa Hk;kud lw[kk iM+k A ;g lw[kk yxkrkj dbZ o"kksaZ rd jgk A yksx vUu ,oa ty ds fcuk cspSu gks x, muds thou&;kiu ds lkjs lalk/ku u"V gks x, A fefFkyk ,d d`f"k iz/kku {ks= gksus ds dkj.k ;gka ds yksx [ksrh&ckjh ij gh fuHkZj jgk djrs Fks ysfdu bl Hk;kud lw[ks dh otg ls jkstxkj ds lk/ku dk vHkko gks x;k A yksx jkstxkj dh ryk’k esa {ks= ls iyk;u djus yxs A mlh nkSjku ckgj ds jkT;ksa ls fefFkyk fp=dyk ds 'kks/kdrkZvksa us vf[ky Hkkjrh; gLrf’kYi cksMZ ds lg;ksx ls {ks= ds dykdkjksa dks bl dyk ds O;kolkf;d mi;ksx dh vksj izsfjr fd;k vkSj bls Lojkstxkj ls tksM+us dh ‘’kq:vkr dh mUgksaus fefFkyk fp=dyk dks ?kjksa dh nhokjksa ls mBkdj dkxt ds iUuksa] diM+ksa vkfn ij cuok, vkSj blds cnys mu dykdkjksa dks ikfjJfed fn, x, A dkxy ,oa diM+ksa ij cuk, x, bu fp=ksa dks fefFkyk ds ckgj iznf’kZr fd, x, ,oa csps Hkh x, A bl izdkj fefFkyk fp=dyk dk O;kolkf;d mi;ksx ‘’kq: gqvk A blesa rRdkyhu dsUnzh; ea=h LoxhZ; yfyr ukjk;.k feJ dk cgqr cM+k ;ksxnku jgk A tks fefFkyk fp=dyk ?kj dh nhokjksa ,oa vkaxu rd lhfer Fkk ,oa ftlesa dsoy izkd`frd jaxksa dk iz;ksx gqvk djrk Fkk O;kolkf;d :i ysus  ds mijkUr blesa cgqr lkjs cnyko vk;s A nhokjksa ij cukbZ tkus okyh ;g isafVax O;kolkf;d mi;ksx ds fy, iwjh rjg vO;ogkfjd Fkh A blfy, LFkkuh; vf/kdkfj;ksa us efgykvksa dks dkxtksa ij fefFkyk isafVaXl cukus ds fy, rS;kj fd;k A ‘’kq:&’kq: esa dkxt ij ogh izHkko iSnk djus ds fy, dykdkjksa us gLr fufeZr dkxtksa ij xk; ds xkscj dh iryh ysi yxkbZ] ftlls jax vPNh rjg lw[ks vkSj lkFk gh jaxksa ds vyx&vyx eupkgs ‘’ksM Hkh fey ldsa A /khjs&/khjs bl fp=dyk us bruh yksdfiz;rk gkfly dj yh fd vkt ;s flQZ vius ns’k esa gh ugha oju fons’kksa esa Hkh dkQh yksdfiz; gks pqdh gS A ;g isafVax vc ek= nhokjksa] dkxtksa rd gh lhfer ugha gS cfYd lkfM+;ka] lwV] nksiV~Vs] VkbYl] insZ] di&IysV] pknj vkfn ds fMtkbu esa Hkh miyC/k gSa A fefFkyk isafVax us fefFkyk dh lkaLd`frd fojklr dks fo’o Qyd ij LFkkfir dj fn;k gS A ;gka dh laLd`fr] ;gka ds fjokt vkSj ;gka dh dyk lkjh nqfu;ka esa e’kgwj gks pqdh gS A ;gka ds dykdkj tks igys vius&vius ?kjksa rd gh lhfer Fks vc mUgsa jkT;] ns’k ,oa vUrjkZ"Vªh; Lrj ij Hkh igpku fey pqdh gS A bl dyk ls igys dsoy efgyk,a gh tqM+h gqbZ Fkha ysfdu O;kolkf;dj.k ds mijkUr cgqr lkjs iq:"k Hkh bl dyk ls tqM+ pqds gSa A bu esa ls dbZ efgyk,a ,oa iq:"k vius dyk ds cy ij fofHkUu jk"Vªh; ,oa vUrjk"Vªh; eapksa ls iqjLd`r Hkh gks pqds gSa A {ks= ds dbZ dykdkj ns’k ds jk"Vªifr ds gkFkksa in~e iqjLdkjksa ls Hkh lEekfur gks pqds gSa A bu dykdkjksa esa egklqanjh nsoh] xksnkojh nRr vkfn‘’kkfey gSa A e/kqcuh ‘’kgj ,oa vkl&ikl ds dqN xkao tSls throkjiqj] jkaVh] eaxjkSuh] lkSjkB vkfn rks fefFkyk isafVax dh otg ls dkQh izfl) gks pqds gSa A ;gka ns’k&fons’k ds dyk izseh ,oa i;ZVd vkrs gSa vkSj dykdkjksa dks isafVaXl cukrs gq, ns[krs gSa vkSj os budh ckjhfd;ksa dks le>us dh dksf’k’k djus gSa lkFk gh ilan dh isafVaXl [kjhnrs gSa A ;gka ds dykdkjksa dks ns’k&fons’k ls vkefU=r fd;k tkrk gS ogka tkdj ;s dykdkj viuh izn’kZuh ds ek/;e ls bl dyk dks iznf’kZr djrs gSa A tkiku esa ,d ,slk laxzgky; LFkkfir gS ftlesa dsoy fefFkyk fp=dyk ds fofHkUu fo/kkvksa ds isafVaXl dks j[kk x;k gS A fo’o esa viuh rjg dk ;g ,d ek= laxzgky; gS A Hkkjr ljdkj us bl dyk dh yksdfiz;rk dks ns[krs gq, fefFkyk fp=dyk ij fofHkUu ewY;ksa ds Mkd fVdV Hkh tkjh fd, gq, gSa A bl chp fcgkj ljdkj us fefFkyk fp=dyk ds fodkl ds fy, e/kqcuh ds lkSjkB xkao esa fefFkyk fp=dyk laLFkku [kksyus dk fu.kZ; fy;k gS tgka bl dyk ds iz’kald bldh ckjhfd;ka lh[ksaxs vkSj dyk dh fofHkUu 'kSfy;ksa dk izf’k{k.k izkIr djsaxs A fcgkj vkus okys ns’k&fons’k ds x.kekU; O;fDr;ksa dks Le`fr fpUg ds :i esa fefFkyk isafVaXl HksaV fd, tkrs gSa A

      fo’o ds bl vn~Hkwr dyk ds laj{k.k ,oa fodkl gsrq vkSj Hkh cgqr dqN fd, tkus dh vko’;drk gS A tSls fefFkyk fp=dyk dk laxzgky; tkiku esa rks gS fdUrq vius gh jkT; vFk~ok ns’k esa bl izdkj ds fdlh laxzgky; ij fopkj ugha fd;k x;k gS tgka i;ZVd vk,a vkSj e/kqcuh fp=dyk ls lacaf/kr tkudkjh izkIr dj ldsa A blds vykos de ls de fefFkykapy ,oa fcgkj ds Ldwyksa] dkWystksa ,oa fo’ofo|ky;ksa esa fefFkyk fp=dyk fo"k; dh i<+kbZ dh O;oLFkk gksuh pkfg, ,oa bldh fofHkUu‘’kSfy;ksa ij ’kks/k gksus pkfg, A lkFk gh dsUnz ,oa jkT; ljdkj }kjk ,slh O;oLFkk gks fd  fefFkyk fp=dyk ds dykdkjksa }kjk rS;kj fd, tkus okys isafVaXl dks cktkj esa mfpr ewY; izkIr gks lds rkfd budks budh esgur ds fglkc ls dyk dk mfpr ikfjJfed fey lds vkSj budk thou Lrj lq/kj lds A

 

ÛÛÛÛÛ


मिथिला महिमा

 मिथिला देश निवासी छी हम मैथिली हमर भाषा सातो जनम अही ठाम हो इएह  हमर अभिलाषा मिथिला देश ........ जानकी, विद्यापति, सलहेस सन-सन अपन धरोहरि ज...