मेरा मन रो रहा है
ये तन-बदन रो रहा है
सारे जहाँ के साथ
मेरा वतन रो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।।
कोई तो बताए जरा
क्या गुनाह है उसका
जो वतन परस्ती में
अपनी जान खो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।।
उन वीरांगनाओं की खता
बताओ बूढ़ी माँ का दोष
उस बच्चे की गलती जो
अपनों के शव ढ़ो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।।
इंसानों की बस्ती में
शैतानों का आ जाना
पाक-चीन की सह पर
मौत का तांडव हो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।।
कोई शोक मनाना है
कोई निन्दा करता है
राजनीति करता हुआ
पक्ष-विपक्ष सो रहा है
मेरा मन रो रहा है ।।
© प्रकाश कुमार झा
आकाशवाणी, भागलपुर
बहुत ही खूबसूरत कविता, दिल को छु लेने वाला है।
जवाब देंहटाएंबहुत हि बढ़िया लिखे हैं भैया, प्रणाम।