एक गोट IAS अधिकारी के पुत्र सुनील कुमार सेहो IAS भ गेलाह । संजोग स IAS अधिकारीक पिता सेहो किछु वर्ष पहिने प्रशासनिके सेवा स रिटायर भेल छलाह । अर्थात हिनका सबहक लगातार तेसर पीढ़ी प्रशासनिक सेवा मे जा रहल छल। एहि खुशी मे सुनील कुमार जी निर्णय लेलनि जे भोज-भात मे टाका व्यर्थ कर' स नीक जे जारक मौसम मे गरीब सबहक बीच कम्बलक वितरण करी। एहि प्रकार अपन पिता स विचार-विमर्श केलाक उपरान्त ओ एकटा नीक दिन देखि बगले के एकटा गामक स्कूल मे कम्बल वितरण लेल कैम्प लगेलाह । आ एहि प्रकार कम्बलक वितरण आरम्भ भेल। ओहि गामक गरीब-गुरबा सब पांति मे ठाढ़ भ अपन-अपन बारी के प्रतीक्षा कर' लागल । सुनील कुमार जी अपने हाथे सबके कम्बल दान कर' लगलाह । जखन ओ लगभग दू-तीन सौ कम्बल दान क चुकलाह तखन हुनकर ध्यान गेलैन्ह जे किछु लोक दोबारा-तेबारा लाइन मे लाइग कम्बल ल रहल छल ।
ओ चिकर' लगलाह - अएं हौ तोरा सबके कनिको लाज नहिं होय छह?
की भेल मालिक? लाइन मे लागल एक टा गरीब हुनका पुछलकन्हि।
सुनील बाबू - की भेल मालिक, तों हमरा सं पुछै छह? पूछहक ने अपना आगा - पाछा जे पांति मे ठाढ़ छह तकरा सबके?
फेर कियो बाजि उठल - नहिं बुझलौंह मालिक कनी फरिछा क कहियौ ने।
सुनील बाबू आर तसमा गेलाह - देखै नहिं छहक, कैक गोटे दू-दू, तीन-तीन बेरि लाइन मे लागि कम्बल ल लेलक अछि। अहुना कतौ होई? एना जे किछु गोटे एक स बेसी कम्बल ल लेताह त सब जरूरतमंद धरि मदति पहुंच सकतै ?
लाईन मे स एक टा नवयुवक राजेश जे पढ़ल-लिखल छल आ प्रतियोगिता सबहक तैयारी करैत छल, तकरा नहिं रहल गेलै आ बाजि उठल - एतेक किएक तमसाई छीयै सर?
सुनील बाबू - तों चुप रह, तोरा किछु कहलियौ ?
राजेश - हयौ सर एकटा कियो बेसिए ल लेलक ताहि मे एतेक तमसेबाक कोन काज, लेबए दियौ ।
बड़का एलाहा पंचैती कर' - सुनील बाबू पसीना पोछैत बाजए लगलाह । तों की बुझबही ? तों त अपन कम्बल ल चलि जेबएं आ जे लोक सब पाछा मे ठाढ़ अपन-अपन बारी के प्रतीक्षा क' रहल अछि तकर की? एना जे सब कियो बेसी-बेसी ल लेतै त पाछाक लोक धरि मदति पहुंच सकतै ?
राजेश - बात अहांक उचित अछि। मुदा एकटा बात कहब त तमसेबै नै ने?
सुनील बाबू - हं कह ने, की बात?
राजेश - नञि कहब अहां तसमा जाएब आ हमरा कम्बलो नञि देब।
सुनील बाबू - हे-हैया ले तोहर कम्बल। चल आब कह।
राजेश - त सुनू , जे काज एहि ठाम कम्बल पएबा लेल किछु लोक क रहल अछि वैह काज त अहूं कैलौंह अछि।
सुनील बाबू - से कोना रौ , हमरा कत' तों कम्बलक लाइन मे ठाढ़ देखलैंह?
राजेश - हम कम्बलक नञि , नौकरीक लाइनक गप्प क' रहल छी।
सुनील बाबू - नौकरी सं कम्बल के की संबंध, कनी फरिछा क कह।
बहस ततेक बढ़ि गेल जे आस-पासक लोक सब सेहो जमा भ गेल। कम्बल वितरण सेहो ठमकल छल।
राजेश - नौकरी आ कम्बल के कोनो सम्बन्ध नहिं छै सर। संबंध छै दुनू ठाम लाइन मे लागल अंतिम व्यक्ति धरि लाभ पहुंचबा सं।
सुनील बाबू - हमरा किछु नञि बुझाएल। इ सब छोड़ हमरा पर जे तों आरोप लगेलैं तकरा फरिछा ।
राजेश - सैह त कहि रहल छी सर। अहांक परिवार सं अहां लगातार तेसर पुस्त छियै जे प्रशासनिक सेवा धरि पहुंच अपन परिवार, समाज आ गामक नाम रौशन केलियेई अछि। एकर अलावे अहांक परिवार सं अनेक सदस्य सब केन्द्र आ राज्य सरकारक विभिन्न पद के सुशोभित क रहल छथि। बेर-बेर अहां सब भारतक संविधान द्वारा भेटल आरक्षणक लाभ उठा रहल छी। एना जे खाली अहीं सब वा अहां सन किछु परिवार आरक्षणक लाभ लैत रहतै त हमरा सन लोक अथवा एहि पांति मे ठाढ़ अंतिम व्यक्ति धरि ओकर लाभ कोना पहुंचतै ।
सुनील बाबूक मूंह-कान लाल भ गेलैन्ह ।
राजेश पुनः बाजल - हम कोनो नव बात नहिं कहलौंह सर अहां जे कहलियै तकरे समर्थन कैलौंह।
एतेक सुनैत देरी अगल-बगलक भीड़ सं थोपरी के आवाज गनगना उठल आ सुनील बाबू पुनः कम्बलक वितरण मे लागि गेलाह ।
©प्रकाश कुमार झा
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